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जन्माष्टमी 2023: जानें मुहूर्त, मंत्र, अनुष्ठान और पूजा विधि – News18


कृष्ण जन्माष्टमी दुनिया भर में हिंदुओं के लिए सबसे शुभ त्योहारों में से एक है। इस साल यह त्योहार 6-7 सितंबर को मनाया जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, इसलिए यह दिन भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ग्रह-नक्षत्रों के खास संयोग के कारण इस साल कृष्ण जन्माष्टमी थोड़ी अनोखी है. पंचांग के अनुसार, 30 साल बाद जन्माष्टमी पर शुभ योग बनेगा. तो आइए आज तिरूपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त, मंत्र, व्रत और पूजा विधि के बारे में।

जन्माष्टमी ‘जयंती योग’ लाभ

1. ज्योतिषाचार्य डॉ. भार्गव के अनुसार जो व्यक्ति जयंती योग में जन्माष्टमी का व्रत रखकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा करेगा, उसे अपने पापों से मुक्ति मिलेगी।

2. जयंती योग में जन्माष्टमी का व्रत रखने से माना जाता है कि व्यक्ति को जीवन में धन और वैभव की प्राप्ति होती है।

जन्माष्टमी 2023 तिथि और पूजा का समय

1. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि प्रारंभ: बुधवार, दोपहर 03:37 बजे

2. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त: गुरुवार, शाम 04:14 बजे तक

3.जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त: रात 11:57 बजे से 12:42 बजे तक

4. रोहिण नक्षत्र: बुधवार, प्रातः 09:20 बजे से गुरुवार, रात्रि 10:25 बजे तक

जन्माष्टमी 2023 का शुभ योग:

1. सर्वार्थ सिद्धि योग: संपूर्ण दिन

2. रवि योग: सुबह 06:01 बजे से रात 09:20 बजे तक

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि:

1. आज सुबह स्नान करने के बाद अपना जन्माष्टमी व्रत शुरू करें और भगवान कृष्ण की पूजा करें।

2. सुबह उठकर ऊं नमो भगवते वासुदेवाय, ऊं कृष्णाय वासुदेवाय गोविंदाय नमो नम: का जाप करते हुए उसके नीचे पीला कपड़ा बिछाकर कलश स्थापित करें।

3. पूजा करते समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए और पूजा की थाली में चंदन, फूल, तुलसी के पत्ते, रक्षा सूत्र, मौसमी फल, मक्खन, मिश्री, खोया का प्रसाद आदि रखना चाहिए।

4. फिर कलश के दाहिनी ओर घी का दीपक जलाना होगा। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें.

5. रात को 8 बजे एक खीरा काटकर उसमें भगवान कृष्ण की मूर्ति रखनी होगी।

7. भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था, इसलिए उसी दौरान उनकी पूजा करें। उन्हें भोजन कराएं और 11 दीपक जलाएं। इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें और बाद में उनके जन्मोत्सव के अवसर पर प्रसाद वितरित करें।

जन्माष्टमी व्रत का पारण

शास्त्रों के अनुसार अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र की समाप्ति के बाद ही पारण करना चाहिए। इसलिए गुरुवार को शाम 4:14 बजे के बाद ही व्रत खोलना चाहिए। -जन्माष्टमी व्रत का पारण कढ़ी-चावल खाकर करना चाहिए।



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