निर्जला एकादशी पर तुलसी पूजन का क्या महत्व है, जानें इस एकादशी व्रत की कथा


निर्जला एकादशी 2024: स्कंद पुराण के विष्णु खंड में एकादशी महात्म्य नाम के अध्यायों में वर्षभर की सभी एकादशियों का महत्व बताया गया है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। यही कारण है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2024) व्रत ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। पौराणिक शास्त्रों में इसे भीमसेन एकादशी, पांडव एकादशी और भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। नाम से ही आभास हो रहा है कि निर्जला एकादशी व्रत निर्जल रखा जाता है।

इस व्रत में जल की एक बूंद भी ग्रहण की नहीं जाती है। व्रत के पूर्ण होने के बाद ही जल ग्रहण करने का विधान है। ज्येष्ठ माह में बिना जल के रहना बहुत बड़ी बात होती है।

यह मान्य है कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत को धारण करता है, उसे वर्षभर में आने वाली समस्त एकादशी व्रत के समान पुण्यफल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने वालों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है और अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन व्रत पारण विधि-विधान से किया जाता है।

निर्जला एकादशी पर तुलसी पूजन
तुलसी की पूजा हिंदू धर्म में काफी समय पहले से चली आ रही है। हिंदू घरों में तुलसी के पौधे की विशेष पूजा की जाती है। सभी एकादशी के दिन तुलसी की विशेष पूजा की जाती है।

यदि बात निर्जला एकादशी की करें तो इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी पूजन का काफी महत्व होता है।

तुलसी को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां देवी-देवताओं का वास होता है।

भीम ने रखा था निर्जला एकादशी व्रत
कथा के अनुसार भीमसेन को अधिक भूख लगती थी। जिसके कारण वे कभी व्रत नहीं रखते थे। लेकिन वे यह भी चाहते थे कि मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति हो, उन्हें पुण्य प्राप्त हो।

वे चाहते थे कि कोई ऐसा व्रत हो, जिसे करने से वे पाप मुक्त हो जाएं और मोक्ष भी मिल जाए। तब उन्हें निर्जला एकादशी व्रत रखने को कहा गया।

ऋषि-मुनियों के सुझाव पर उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत रखा। व्रत के पुण्य प्रभाव और विष्णु कृपा से वे पाप मुक्त हो गए और अंत में मोक्ष को प्राप्त हुए।

ये कार्य करें सर्वप्रथम
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2024) के दिन दूध में केसर मिलाकर अभिषेक करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। निर्जला एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्र का पाठ करने से कुंडली के सभी दोष समाप्त होते हैं।

निर्जला एकादशी के दिन भोग में भगवान विष्णु को पीले पैरों का प्रयोग करने से धन की वर्षा होती है। निर्जला एकादशी के दिन गीता का पाठ भगवान विष्णु की मूर्ति के समान बताने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना पूरी नहीं होती है। इसलिए निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को भोग में तुलसी का प्रयोग करें।

न करें ये गलती
माता तुलसी को विष्णु प्रिया कहा जाता है।शास्त्रों के अनुसार एकादशी पर तुलसी में जल अर्पित नहीं करना चाहिए। इससे पाप के भागी बनते हैं क्योंकि इस दिन तुलसी भी एकादशी का निर्जल व्रत करती हैं। साथ ही विष्णु जी को पूजा में अक्षत अर्पित न करें। श्रीहरि की उपासना में चावल वर्जित होते हैं।

निर्जला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
महाभारत काल (Mahabharat) के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- हे परम आदर्शीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं और मैं भी व्रत करने के लिए कहता हूं।

लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है। भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- पुत्र! तुम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जल व्रत करो। इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है।

जो भी मनुष्य एकादशी तिथि (एकादशी तिथि) के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना जल पिए रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे वर्ष में जीने वाली एकादशी आती है और उन सभी एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत होता है। करने से मिल जाता है. तब भीम ने व्यास जी की आज्ञा का पालन कर निर्जला एकादशी का व्रत किया था।



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