कार्तिक मास में ‘राम’ और ‘प्रबोधिनी’ एकादशी, जानें शास्त्रों में महत्वपूर्ण

कार्तिक मास में 'राम' और 'प्रबोधिनी' एकादशी, जानें शास्त्रों में महत्वपूर्ण


प्रत्येक मास में दो ब्रह्माण्ड देवता होते हैं। हमारे सनातन धर्म में कार्तिक मास को सबसे अधिक पुण्यप्रद माना गया है, इस मास में हर दिन पर्व की तरह ही मनाना चाहिए। पद्म पुराण उत्तरखंड के 62 अध्याय के अनुसार एक बार महाराज युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से आए थे- कार्तिक मास में जो तृतीया आती है उनके बारे में कुछ विशेषताएँ बताएं। भगवान कृष्ण बोले कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में ‘राम’ शुक्ल पक्ष में ‘प्रबोधिनी’ एकादशी होती है।

राम पूर्णिमा की कथा और महत्व

‘रामा’ ब्रह्माण्ड बड़े-बड़े पापों को दूर करने वाली है। पूर्वकाल में मुचुकुंद नामक राजा थे। वे भगवान श्री विष्णु के भक्त और सत्य प्रतिज्ञ थे। राजा के यह चन्द्रभागा कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। राजा ने चन्द्रसेन कुमार शोभन से उनका विवाह करा दिया। शोभन एक दिन अपने प्रियजनों के घर आये। वह दिन दशमी का दिन था. राजा ने ढिंढ़ोरा पिटवाया कि एकादशी के दिन कोई भी “भोजन न करे”, “कोई भी भोजन न करे”। इस डंके की घोषणा से दुखी शोभन ने अपनी पत्नी चंद्रभागा से पूछा कि इस बार उन्हें क्या करना चाहिए।

चन्द्रभागा बोली कि उसके पिता के घर पर रात्रि में अनाज ग्रहण नहीं किया गया था। पशु भी अन्न, घास तथा जल का आहार नहीं खाते टैब मनुष्य प्रतिदिन कैसा भोजन कर सकता है। राजा के भोजन करने पर निंदा होगी.

शोभन ने सत्यता के आधार पर पोस्ट किया। ईश्वर इच्छा सर्वोपरी है. आगे भगवान ने कहा कि इस दृढ़ निश्चय कर शोभन ने व्रत का उद्यापन किया। भूख प्यास से शरीर में पीड़ा होना लगा। रात्रि को पूजा की शुभकामना थी, वे रात्रि शोभन के लिए अत्यंत दुःखदायिनी हुई। सवेरा होते-होते उनका निधन हो गया। राजा मुचुकुंद ने दाह-संस्कार शास्त्र बनाया। चन्द्रभागा अब पिता के ही घर पर रहने लगी।

‘राम’ ने मनाई ब्रह्माण्ड के व्रत के प्रभाव से शोभन को देवता की पूर्ण प्राप्ति हुई। वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की एकल शोभा प्राप्त हुई। सोमशर्मा नाम के एक ब्राह्मण थे। वे तीर्थ यात्रा में मंदराचल पर्वत (एक प्रकार से देवताओं का स्थान) पर गए। वहां उन्हें शोभन दिखाई देता है. राजा के कारीगरों को पहचान कर वे उनके पास चले गए। शोभन भी सोमशर्मा को देखते ही जल्द ही उनकी शरण में चले गए। फिर पूरे परिवार का, नगर का कुशल-समाचार पूछा। सोमशर्मा ने आपसे पूछा कि क्या आपको इस नगर की प्राप्ति कैसी हुई?

शोभन ने कार्तिक कृष्ण पक्ष की ‘राम’ नामक एकादशी व्रत का महत्व बताया कि किस प्रकार श्रद्धाहीन ने इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए ऐसा नगर पाया यह सदा स्थिर रहने वाला नहीं है। चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त का अवलोकन कर निवेदन है। शोभन की बात से आश्चर्यचकित होकर सोमशर्मा मुचुकुंदपुर गए और वहां चंद्रभागा के सामने उन्होंने सारा ‘वृत्तान्त’ कहा। सोमशर्मा बोले पति जिस इंद्रपुरी के समान नगर को अस्थिर बताते हैं तुम स्थिर बनो।

चन्द्रभागा के मन में पति के दर्शन की लालसा थी। वहां ले डूबो का अनुरोध करने लगी ताकि वह अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बना सके। सोमशर्मा उनके साथ मन्द्राचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये। वहां ऋषि के मंत्र की शक्ति और ब्रह्माण्ड के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया। वह पति के सामने आ गईं। अपनी पत्नी को देख शोभन को बड़ी ख़ुशी हुई। उन्होंने उसे अपने वाम भाग में सिंहासन पर सामानया; तदनंतर चंद्रभागा ने कहा कि जब पिता अपने घर में रहते थे तब से तीसरे आठवें वर्ष तक जो तृतीया के व्रत रखते थे और उनके अंदर जो पुण्य जमा होता था, उनके प्रभाव से यह नगर कल्प के अंत तक स्थिर रहता था और सभी प्रकार ‘के सुख से समृद्धि होगी।’

इस प्रकार ‘राम’ व्रत के प्रभाव से चंद्रभागा अपने पति के साथ मंदराचल के शिखर पर विहार करती है। राजन ने कहा, ‘रामा’ ने डेडिकेटेड सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। दोनों की शुभ कामनाएं एकादश व्रत पापनाशक है। जैसे कृष्ण पक्ष को ‘राम’ एकादशी है, वैसे ही कृष्ण पक्ष को ‘प्रबोधिनी’ एकादशी भी है, उनका भेद नहीं होना चाहिए। जो मनुष्य ब्रह्माण्ड व्रतों का माहात्म्य सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।

प्रबोधिनी एकादशी कथा और शास्त्रों में इसका महत्व है

युधिर ने श्रीकृष्ण के मुख से अब कार्तिक शुक्ल पक्ष में एकादशी की महिमा का निवेदन किया। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कार्तिक शुक्लपक्ष में जो तृतीया तिथि होती है, जैसा कि उनका वर्णन ब्रह्माजी ने नारदजी से कराया था, वहीं मैं संकट बताता हूं। नारदजी ने पूछा था कि जिस परमपुरुष में धर्म-कर्म में इच्छा प्रकट करने वाले भगवान गोविंद जागते हैं, वह ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का महात्म्य बताता है।

ब्रह्मा जी बोले ‘प्रबोधिनी’ का महात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि और उत्तम बुद्धि वाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करता है। ‘प्रबोधिनी’ एकादशी को एक ही उपवास से मनुष्य को हजारों अश्वमेध तथा राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। जो दुर्लभ है, अंकित असम्भव है और जिसे त्रिलोकी में किसी ने भी नहीं देखा है; ऐसी वस्तु के लिए भी ‘प्रबोधिनी’ पर याचना करने के लिए उसे भेजें। असंत भक्ति पापनाशिनी ‘प्रबोधिनी’ मेरुपर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं। जो लोग ‘प्रिणी’ एकादशी का मन से ध्यान करते हैं और जो इसके व्रत का अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुखों से भरे हुए भगवान विष्णु के परम धाम को चले जाते हैं। संपूर्ण तीर्थो में नहाकर सुवर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह स्वर्ग करने से मनुष्य को प्राप्त होता है।

कार्तिक की ‘प्रबोधिनी’ ब्रह्माण्ड पुत्र तथा पौत्र उपलब्ध कराने वाली है। जो ‘प्रबोधिनी’ की पूजा करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और साधक है और उसी को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। उस दिन का स्नान, दान, जप और घर करता है, वह सब अक्षय होता है। जो मनुष्य उस तिथि को उपवास करके भगवान की भक्ति को नकार कर पूजा करते हैं, वे सौ जन्मों के पापों से परे पा जाते हैं। यह व्रत मनुष्य द्वारा श्रीहरि के वैकुंठ धाम को जाता है। पुत्र नारद ने जो भगवान विष्णु की भक्ति में अन्न का त्याग किया, उसे दस हजार यज्ञों का फल प्राप्त हुआ। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के श्रवण-श्रवण से भगवान मधुसूदन को जैसे संतोष होता है, आदर्श उन्हें यज्ञ, दान या जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभकर्म परायण कार्तिक मास में एक या आधा पुरुष श्लोक भी भगवान विष्णु को कथा बंचते हैं, उनमें सौ गोदान का फल होता है।

कार्तिक में भगवान केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय और श्रवण काल ​​की स्थापना। जो मनुष्य सदाबहार सनातन कथा कार्तिक मास में भगवान विष्णु की कथा सुनता है, उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है जो ‘प्रबोधिनी’ ब्रह्माण्ड के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है, उसे सातों लोकों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। जो भगवान विष्णु की कथा सुनकर अपनी शक्ति के अनुसार कथा वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। जो मानव कार्तिक मास में भगवत्सबंधी गीत और शास्त्रविनोद की समयावधि है, उसका पुनर्जन्म (पुनर्जन्म) मैंने नहीं देखा है। जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान के समसामयिक गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णु की कथा करता है, वह त्रिलोकों के ऊपर स्थापित होता है।

कार्तिक की ‘प्रबोधिनी’ कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहुत से फल-फूल और कपूर द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। एकादशी आने पर धन की कंजूसी नहीं करणीय तिथि; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। ‘प्रबोधिनी’ को जागते समय जल लेकर फल और नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रीजनार्दन को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य के भोजन और दक्षिणा आदि के भगवान विष्णु की जयंती के लिए गुरु की पूजा करनी चाहिए।

जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवत की कथा सुनता या पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर पिला दान का फल मिलता है। जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्र युगोंतक पुण्य प्राप्त करते हैं। सभी प्रकार के फूलों और फूलों को चढाने से जो फल होता है, वह कार्तिक मास में तुलसी के एक पत्ते से मिलता है। देवताओं द्वारा यज्ञ करने तथा अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है, वह कार्तिक में तुलसीदल की विधि से केशव की पूजा करने पर प्राप्त होता है।

तो इस प्रकार भगवान कृष्ण महाराज युधिष्ठिर को ‘राम’ एवं ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का माहात्म्य माना जाता है। इस साल ‘रामा’ एकादशी 9 नवंबर 2023 को पड़ रही हैं और ‘प्रबोधिनी’ एकादशी 23 नवंबर 2023 को पड़ रही हैं, इसे हर्षोल्लास से मनाएं।

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