इन पांच में से किसी एक फल की भी खेती कर ली तो खटाखट आएगा मुनाफा


Agriculrure News: खेती अब पहले की तरह नहीं रही. बाजार में खेती को लेकर नई नई तकनीकें आ गई हैं. इन तकनीकों को अपना कर किसान हर साल लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे में बारिश का मौसम भी शुरू हो चुका है, जिसमें आपको हम पांच ऐसे फलों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी खेती से आप तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं.

भारत में प्रमुख फलों की खेती के लिये मानसून सीजन सबसे बेहतर रहता है. इस दौरान खेत में भी नमी बनी रहती है और सिंचाई का खर्च भी बच जाता है. ऐसे में जल संचय करके ऐसे फलों की खेती करनी चाहिये, जिन्हें सिर्फ बारिश के मौसम में उगाकर ही किसानों को अच्छी आमदनी मिल जाये. इन फल सब्जियों में जामुन, सिंघाड़ा, कमल ककड़ी(Lotus Cucumber), मशरूम और अनार का नाम शामिल है. ज्यादातर किसान खरीफ फसलों की खेती के लिये जमीन की तैयारी तो कर ही चुके हैं. ऐसे में इन फलों की खेती उनके लिए फायदे का सौदा साबित होती है.

मशरूम

Indian Mashroom / Mushroom | Camera: Nikon V1 + 1 NIKKOR 30-… | Flickr

अक्सर बारिश में घास के बीच, गार्डन और सड़क के किनारे अपने आप मशरूम उग जाते हैं. ये मशरूम जहरीले होते हैं, जो इंसान के खाने के लायक नहीं होते, लेकिन इस मौसम में मशरूम की कई उन्नत किस्मों की खेती करके अच्छी आमदनी ले सकते हैं. दरअसल इस मौसम में नमी और आर्द्रता काफी होती है, जो कि मशरूम की खेती के लिये जरूरी है, इसलिये बारिश के मौसम में 4 * 4 के कमरे में मिल्की, बटन, ऑयस्टर जैसे मशरूम की खेती कर सकते हैं. बता दें कि बाजारों और मंडियों में मशरूम की मांग काफी बढ़ गई है. सिर्फ एक किलो मशरूम 250 से 300 रुपये की कीमत पर हाथों-हाथ बिक जाता है. महज 50,000 से एक लाख रुपये के खर्च पर मशरूम की यूनिट लगाकर सालों साल मुनाफा कमा सकते हैं.

सिंघाड़ा

Singhara Benefits in Hindi - सिंघाड़ा खाने के फायदे व नुकसान

सिंघाड़े की खेती के लिये अधिक पानी की जरूरत होती है. ज्यादातर किसान बारिश के समय तालाबों में पानी भरकर सिंघाड़ा उगाते हैं, क्योंकि बारिश के पानी में सिंघाड़े की कम मेहनत में ही अच्छी पैदावार मिल जाती है. वैसे तो सिंघाड़ा जून-जुलाई में बोया जाता है, लेकिन जुलाई-अगस्त के बीच खेत में भी पानी भरकर सिंघाड़े की खेती कर सकते हैं. इस समय तक सिंघाड़े की खेती करने के बाद दिसंबर-जनवरी तक फसल तैयार हो जाती है, जिसके बाद बाजार में सिंघाड़ा और इससे बने उत्पादों के अच्छे भाव मिल जाते हैं.  किसान चाहें तो सिंघाड़े की प्रोसेसिंग करके आटा और दूसरे प्रोडक्ट बनाकर अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं. 

जामुन

6 Benefits of Jamun (Java Plum / Indian Blackberry) for Weight Loss and  Immunity

बरसात के मौसम को फलों के बाग की तैयारी और पौधों की रोपाई के लिये सर्वोत्तम मानते हैं. खासकर जून से अगस्त के बीच ज्यादातर नये बागों की रोपाई और पुराने बागों के जीर्णोद्धार का काम किया जाता है. बात करें जामुन की खेती के बारे में तो अच्छी बरसात के बीच जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में इसकी बागवानी करना फायदेमंद रहता है, क्योंकि इस मौसम में पौधे मिट्टी, हवा और पानी की मदद से प्राकृतिक तौर पर विकास करते हैं. एक हेक्टेयर में जामुन के 250 पौधों की रोपाई कर सकते हैं, जिसके बाद अगले 8 सालों तक जामुन के सिर्फ एक ही पेड़ से 80 से 90 किलो तक फलों का उत्पादन मिल जायेगा.

स्ट्रॉबेरी

Stroberry

स्ट्रॉबेरी की खेती सामान्यतः: साल के आखिर में शुरू की जाती है. इसकी बुवाई सितंबर और अक्टूबर के महीने में की जाती है. बुवाई से करीब 1 सप्ताह पहले खेत की अच्छे से जुताई की करें. और इसके बाद इसमें गोबर की खाद अच्छे से मिले और उसके साथ ही कीटनाशक के तौर पर पोटाश और फास्फोरस मिलाएं. किसानों ने अब परंपरागत खेती के अलावा और भी कई तरह की फसलें करना शुरू कर दिया है.

जिनमें अलग-अलग फलों की खेती भी शामिल है. ऐसा ही एक फल है स्ट्रॉबेरी जो आमतौर पर ठंडे इलाकों में होता है. स्ट्रॉबेरी की खेती से किसान अब लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. पहले जहां इसकी खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर में हुआ करती थी. वहीं अब सिर्फ ठंडे इलाकों में ही नहीं बल्कि कम ठंड वाले क्षेत्र जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी हो रही है. चलिए जानते है कैसे स्ट्रॉबेरी की खेती से लाखों का मुनाफा कमाया जा सकता है.

अनार

इन पांच में से किसी एक फल की भी खेती कर ली तो खटाखट आएगा मुनाफा

भारत में खून बढ़ाने वाले फल के नाम से मशहूर अनार की बागवानी (Pomegranate) के लिये भी बारिश का समय सबसे उत्तम रहता है. इसके लिये हल्की बलुई दोमट मिट्टी में कंपोस्ट (Compost)  डालकर जैविक विधि (Organic Farming) से खेत तैयार करने चाहिये. बता दें कि हर तरह के पानी में अनाज की खेती कर सकते हैं. खासकर बारिश के पानी को संचय करके सिंचाई करने पर अनार का क्वालिटी उत्पादन मिल सकता है. इसकी खेती के लिए टपक सिंचाई की पद्धति (Drip Irrigation Technique) सबसे कारगर मानी जाती है, जिसमें पानी और श्रम दोनों की बचत होती है. इसके बागों के प्रबंधन के लिये जैविक कीटनाशक (Organic Pesticides)और जीवामृत (Jeevamrit)  का इस्तेमाल फायदेमंद साबित होता है.  इसके पेड़ से हर 120 से 130 दिन बाद अनार के फलों की तुड़ाई कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें: ये विदेशी फल आपको कर देंगे मालामाल, आज ही खेत में लगा लें



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *