चातुर्मास 12 नवंबर को समाप्त होगा।
काशी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार 17 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है।
चातुर्मास्य या चातुर्मास चार महीनों की पवित्र अवधि मानी जाती है, जो जून और जुलाई में पड़ने वाली शयनी एकादशी से शुरू होकर प्रबोधिनी एकादशी यानी अक्टूबर-नवंबर में समाप्त होती है। चातुर्मास आमतौर पर भारत में मानसून के मौसम के साथ मेल खाता है। यह अवधि सभी के लिए तपस्या, उपवास, पवित्र नदियों में स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में है। भक्त इस समय को व्रत रखने के लिए समर्पित करते हैं, चाहे वह मौन रहना हो, पसंदीदा भोजन से परहेज करना हो या दिन में सिर्फ एक बार भोजन करना हो।
सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इन चार महीनों में भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन अवस्था में रहते हैं। इसलिए इस दौरान उनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
काशी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार 17 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाएगा, जो 12 नवंबर तक रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश या अन्य शुभ कार्य बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान केवल पूजा-पाठ, अनुष्ठान और मंत्र जाप से ही भगवान प्रसन्न होते हैं।
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि चातुर्मास के चार महीनों में दान-पुण्य और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। इस दौरान गरीब और जरूरतमंद लोगों को भोजन, कपड़े और अन्य जरूरी चीजें दान की जा सकती हैं।
विशेषज्ञ के अनुसार, इस समय तुलसी की पूजा करने से कई लाभ होते हैं। वह लोगों को इस समय बिस्तर पर सोने के बजाय जमीन पर सोने की सलाह देते हैं क्योंकि इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और जीवन से सभी तरह की परेशानियां और बाधाएं दूर होती हैं।
इस पवित्र अवधि के दौरान कुछ प्रमुख उत्सव इस प्रकार हैं-
- गुरु पूर्णिमा
- कृष्ण जन्माष्टमी
- रक्षाबंधन
- गणेश चतुर्थी
- नवरात्रि (दशहरा – दुर्गा पूजा – विजयादशमी)
- दिवाली
- चंपा षष्ठी (महाराष्ट्र में धार्मिक रीति के अनुसार, इस दिन चातुर्मास समाप्त होता है)।
कई हिंदू, खास तौर पर वैष्णव परंपरा का पालन करने वाले लोग, तेल, नमकीन, मीठा या प्याज़ या लहसुन वाला खाना खाने से परहेज़ करते हैं। इस दौरान बैंगन भी नहीं खाया जाता।